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महाकुंभ में पिता ने अपनी लाडली बेटी को कर दिया दान… 19 जनवरी को होगा पिंडदान, जानिए क्यों

मेवाड़ समाचार

प्रयागराज में एक ऐसा अद्वितीय और दिल छूने वाला अध्याय जुड़ गया है, जिसे सुनकर हर कोई चौंक जाएगा। आगरा के पेठा व्यवसायी दिनेश सिंह और उनकी पत्नी रीमा ने अपनी 13 वर्षीय बेटी राखी सिंह को जूना अखाड़े में दान कर दिया। यह कदम न केवल एक पारिवारिक निर्णय था, बल्कि समाज के प्रति एक गहरी श्रद्धा और समर्पण की मिसाल पेश करता है। राखी अब गौरी के रूप में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुकी हैं।

यह प्रेरणादायक घटना एक नई दिशा की ओर इशारा करती है, जहां परंपराओं और धर्म की शक्ति को न केवल सम्मानित किया जाता है, बल्कि उसे जन-जन तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता भी देखी जाती है।

गंगा स्नान के बाद लिया ऐतिहासिक निर्णय

महाकुंभ के पवित्र जल में गंगा स्नान के बाद, राखी ने एक अहम और प्रेरणादायक निर्णय लिया। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उनका नामकरण ‘गौरी’ किया गया, और साध्वी बनने की राह पर चल पड़ीं। यह घटना महाकुंभ के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने वाली थी। 19 जनवरी को उनके पिंडदान की प्रक्रिया भी आयोजित की जाएगी, जो उन्हें आधिकारिक रूप से उनके गुरु के परिवार का हिस्सा बनाएगा और पारिवारिक जीवन से अलविदा लेने का मौका देगा।

राखी से गौरी बनने का एक साहसी सफर

राखी, जो पहले आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखती थीं, अब सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हो गई हैं। उनका यह कदम, एक धार्मिक यात्रा के अलावा, समाज के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने बताया कि “धुनी रमाते साधुओं के बीच शुरुआत में डर लगता था, लेकिन चौथे दिन ही मेरे मन में वैराग्य जागृत हुआ।” यह साहसिक कदम ने यह साबित कर दिया कि यदि दिल में निश्चय हो, तो कोई भी उम्र या परिस्थितियाँ धर्म के पथ पर चलने में बाधक नहीं बन सकतीं।

गुरु की दीक्षा और पारंपरिक संस्कार

जूना अखाड़े के श्रीमहंत कौशल गिरि ने राखी को वैदिक रीति से दीक्षा दी। हालांकि महंत ने राखी को पुनः विचार करने की सलाह दी, लेकिन राखी ने अपने निर्णय पर अडिग रहते हुए साध्वी बनने की राह चुनी। महंत कौशल गिरि ने बताया कि यह एक सामूहिक पारिवारिक निर्णय था, जिसमें राखी को अध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी।

माता-पिता की भावनाएं… गर्व

राखी के माता-पिता दिनेश सिंह और रीमा अपने बेटी के फैसले पर गर्व महसूस कर रहे हैं। दिनेश सिंह ने कहा, “जब हमें पता चला कि हमारी बेटी साध्वी बनने का निश्चय कर चुकी है, तो हमें खुशी हुई कि वह धर्म और समाज की सेवा करना चाहती है।” रीमा ने बताया कि भागवत कथा के समय से ही उनके मन में भक्ति का बीज अंकुरित हुआ था, और आज उनकी बेटी ने वही राह चुनी है।

छोटी बहन …सहेली की भावनाएं

राखी की छोटी बहन निक्की और सहेली लक्षिता दोनों ही इस बदलाव से भावुक हो गईं। निक्की अपनी बहन के साध्वी बनने के फैसले को स्वीकार करने में थोड़ा समय ले रही है, जबकि लक्षिता ने उसे फोन पर समझाने की कोशिश की। लेकिन गौरी ने अपने फैसले पर दृढ़ रहते हुए इसे अपने जीवन का उद्देश्य मान लिया।

कुंभ में परंपरा और धर्म का संगम

महाकुंभ में कन्या दान की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए, गौरी का साध्वी बनना धर्म के रास्ते पर एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाला उदाहरण बन गया है। महंत कौशल गिरि ने कहा कि यह कदम सनातन धर्म की परंपराओं को न केवल जीवित करता है, बल्कि यह दिखाता है कि किस प्रकार परंपराओं को समय के साथ बदलते समाज में अपनाया जा सकता है।

आगे की योजना:…एक नया अध्याय

गौरी अब अपने जीवन को अखाड़े के नियमों के अनुसार जीने के लिए तैयार हैं। वह आगे चलकर धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ समाज में सनातन धर्म के प्रचार के लिए काम करेंगी। महाकुंभ 2025 में किया गया यह कन्या दान केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि समाज में आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने की एक प्रेरणादायक मिसाल बन गया है।

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Author: mewadsamachar

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