मेवाड़ समाचार
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां संविधान ने सभी धर्मों को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है। धार्मिक स्थलों, परंपराओं, और आस्थाओं को लेकर विवाद उठते रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका का दायित्व है कि वह निष्पक्ष और संवैधानिक ढंग से इन मुद्दों का समाधान करे ।
जब ऐसी घटनाए राजनीतिक रंग लेती हैं, तब समाज के विभिन्न वर्गों में विचार-विमर्श और असहमति की स्थिति बनती है।
हाल ही में अजमेर शरीफ दरगाह को मंदिर घोषित करने की याचिका पर कोर्ट के नोटिस ने न केवल न्यायपालिका की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने न्यायपालिका में “छोटे जजों” के निर्णयों पर सवाल उठाते हुए यह आरोप लगाया कि इस प्रकार के फैसले देश को अशांति और सांप्रदायिक विभाजन की ओर ले जा सकते हैं। यादव का कहना है कि सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा समर्थित तंत्र ऐसी चालें चल रहा है, जो देश में हिंसा और अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती हैं।
दरगाह को मंदिर बताने की याचिका कोर्ट में स्वीकार
हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को मंदिर बताते हुए एक याचिका दायर की है। इस याचिका को निचली अदालत ने स्वीकार कर लिया और दरगाह पक्ष को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। इस फैसले ने राजनीतिक और धार्मिक विवाद को जन्म दिया है।
दरगाह प्रमुख नसरुद्दीन चिश्ती का बयान
अजमेर दरगाह के प्रमुख नसरुद्दीन चिश्ती ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा, “यह एक नई परिपाटी बन गई है कि कोई भी व्यक्ति आकर दरगाह या मस्जिद को मंदिर बताने का दावा करता है। यह परिपाटी समाज और देश के हित में नहीं है।”
उन्होंने दरगाह के ऐतिहासिक महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह 850 साल पुरानी है। 1195 में ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर आए और 1236 में उनका इंतकाल हुआ। तब से यह दरगाह सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र रही है। नसरुद्दीन ने यह भी कहा कि यह स्थान राजा, रजवाड़ों और ब्रिटिश राजाओं के समय से ही श्रद्धा का प्रतीक रहा है।
असदुद्दीन ओवैसी का तीखा विरोध
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मुद्दे पर नाराजगी जताई। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा:
“सुल्तान-ए-हिन्द ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (RA) भारत के मुसलमानों के सबसे अहम औलिया में से एक हैं। सदियों से उनके आस्ताने पर लोग आते रहे हैं और आते रहेंगे। 1991 का इबादतगाह कानून साफ कहता है कि किसी भी इबादतगाह की मजहबी पहचान नहीं बदली जा सकती। लेकिन यह अफसोसनाक है कि हिंदुत्व तंज़ीमों के एजेंडे को पूरा करने के लिए संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।”
इतिहास और सांप्रदायिक सौहार्द का मुद्दा
दरगाह से जुड़े लोगों और नेताओं का कहना है कि यह स्थान हमेशा से भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक रहा है। यह विवाद न केवल सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि धार्मिक स्थलों के सम्मान पर भी सवाल खड़े करता है।
20 दिसंबर को इस मामले की अगली सुनवाई है, जिसमें दरगाह पक्ष अपनी प्रतिक्रिया देगा। इस बीच, धार्मिक और राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कोर्ट इस विवाद को किस तरह से संभालता है और क्या यह 1991 के इबादतगाह कानून के तहत सुलझाया जाएगा।

Author: mewadsamachar
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